
बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती है…
नवम्बर 7, 2016
कोई टिप्पणी नहीं
बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती है;
यह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती है;
तड़प उठता हूँ दर्द के मारे,
ज़ख्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती है;
अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ;
मुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है!
यह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती है;
तड़प उठता हूँ दर्द के मारे,
ज़ख्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती है;
अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ;
मुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है!